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प्र वा॑मर्चन्त्यु॒क्थिनो॑ नीथा॒विदो॑ जरि॒तारः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ इष॒ आ वृ॑णे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra vām arcanty ukthino nīthāvido jaritāraḥ | indrāgnī iṣa ā vṛṇe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। वा॒म्। अ॒र्च॒न्ति॒। उ॒क्थिनः॑। नी॒थ॒ऽविदः॑। ज॒रि॒तारः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। इषः॑। आ। वृ॒णे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:12» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राग्नी) बिजुली और सूर्य्य के सदृश प्रकाश सहित विद्यमान सभापति सेनापतियो ! जो (नीथाविदः) नम्रतायुक्त (उक्थिनः) उत्तम गुणों की प्रशंसा करने तथा (जरितारः) ईश्वर की स्तुति करनेवाले (वाम्) तुम दोनों को (प्र, अर्चन्ति) विशेष सत्कार करते हैं उनसे मैं (इषः) अन्न आदि को (आ, वृणे) सब ओर से प्राप्त होऊँ ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पुरुष पृथिवी आदि पदार्थों के गुण कर्म स्वभावों को जानते हैं, वे ही युद्ध और न्यायाचरण कर सकते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्राग्नी इव वर्त्तमानौ सभासेनेशौ ये नीथाविद उक्थिनो जरितारो वां प्रार्चन्ति तेभ्योऽहमिष आवृणे ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (वाम्) युवाम् (अर्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (उक्थिनः) गुणप्रशंसकाः (नीथाविदः) ये नीथान् विनयान् विन्दन्ति ते (जरितारः) स्तावकाः (इन्द्राग्नी) विद्युत्सूर्याविव वर्त्तमानौ (इषः) अन्नादीनि (आ) समन्तात् (वृणे) प्राप्नुयाम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पदार्थानां गुणकर्मस्वभावान् जानन्ति त एव युद्धं, न्यायं च कर्तुं शक्नुवन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे पृथ्वी इत्यादी पदार्थांचे गुण, कर्म, स्वभाव जाणतात तेच युद्ध व न्यायाचरण करू शकतात. ॥ ५ ॥